जापान में कोई सौ वर्ष पहले एक छोटे से राज्य पर पड़ोस के बड़े राजा ने
हमला बोल दिया। हमलावर राजा बड़ा है। आक्रामक बहुत शक्तिशाली है। कोई दस
गुनी ताकत है उसके पास, और राज्य छोटा है जिस पर हमला हुआ है, बहुत गरीब
है। न सैनिक हैं, न युद्ध का सामान है, न सामग्री है। सेनापति घबड़ाकर बोला
कि मेरी सामथ्र्य के बाहर है कि मैं युद्ध पर कैसे जाऊं, यह जानते हुए कि
अपने सैनिकों की हत्या करानी है। और हार निश्चित है। मैं इनकार करता हूं,
मुझे क्षमा कर दें। मैं इस युद्ध में नहीं जा सकूगां। कोई मौका ही नहीं है
जीतने का। दस गुने सिपाही हैं उसके पास। दस गुनी युद्ध की सामग्री है।
आधुनिक उपाय हैं और हमारे पास कुछ भी नहीं हैं। हार निश्चित है, इसलिए हार
ही जाना उचित है। व्यर्थ लोगों का कटवाने से क्या प्रयोजन है?
राजा भी घबड़ाया। वह भी जानता था कि बात सच है। सेनापति को कायर कहना
उचित नहीं है। उसने युद्ध और लड़े हैं। आज पहली दफा इनकार कर रहा है और
इनकार करने में कायरता नहीं काम कर रही है; सीधी बात है। साफ गणित जैसी बात
है; दो और दो चार जैसी बात है। हार निश्चित है। लेकिन राजा का मन नहीं
मानता कि बिना हारे और हार जाएं। वह रातभर बेचैन रहा है। सुबह उसने अपने
वजीर को पूछा है, क्या कर रहे हैं, ‘दुश्मन रोज आगे बढ़ते आ रहे है?’
उस
वजीर ने कहा, ‘मैं एक फकीर को जानता हूं। जब भी मेरे जीवन में कोई उलझन
आयी है, मैं उसी के पास गया हूं। आज तक बिना सुझाव के वापस नहीं लौटा। सुबह
है, आप चले चलें। पूछ लें उससे।’
वे फकीर के दरवाजे पर पहुंच गए
है। सेनापति भी साथ है। फकीर हंसने लगा। उसने कहा, ‘छोड़ो, उस सेनापति को
छोड़ो। क्योंकि जो जाने के पहले कहता है कि हार जाना निश्चित है, उसके जीत
की तो कोई संभावना नहीं रह गयी। मैं चला जाता हूं सेनापति की जगह सेनाओं को
लेकर।’
राजा और भी डरा। सेनापति अनुभवी है। अनेक युद्धों में लड़ा
और जीता है। यह फकीर, जो तलवार पकड़ना भी नहीं जानता है! लेकिन फकीर ने
कहा, ‘बेफिक्र रहो, आठ-दस दिन के भीतर जीतकर वापस लौट आयेंगे।’ फकीर सेनाओं
को लेकर रवाना हो पड़ा। सेनायें घबरा रही हैं, उनके हाथ-पैर कांप रहे
हैं-सैनिकों के। जब सेनापति ने इनकार कर दिया, तो एक अजनबी, अनुभवी नहीं है
जो, ऐसा फकीर!
लेकिन फकीर गीत गाते हुए चला जा रहा है। फिर वे उस
नदी के पास पहुंच गये जिसके उस तरफ दुश्मन का डेरा था। फकीर ने सैनिकों को
एक मंदिर के पास रोका और कहा कि ‘रुको। दो क्षण को जरा मैं जाकर मंदिर के
देवता को पूछ लूं कि हम जीतेंगे या हारेंगे? मेरी हमेशा यह आदत रही है। जब
कभी मुश्किल में पड़ा हूं, इसी मंदिर के देवता से पूछ लेता हूं।’
सैनिकों ने कहा, ‘लेकिन देवता-कैसे कहेगा-हम कैसे समझेंगे कि कहा देवता ने? उसने कहा, रास्ता है।’
मंदिर
को घेरकर सैनिक खड़े हो गये हैं। फकीर ने अपने खीसे से एक चमकता हुआ
सिक्का निकाला। और कहा कि ‘हे प्रभू! अगर हम जीकर लौटते हैं, तो सिक्का
सीधा गिरे। अगर हम हारकर लौटते हैं, तो सिक्का उलटा गिरे।’
सिक्के
को ऊपर फेंका है, हवा में, आकाश में। सूरज की रोशनी में सोने को सिक्का चमक
रहा है और सारे सैनिकों के प्राण अवरुद्ध हो गये हैं, श्वास बंद हो गयी
अब। ठगे हुए देख रहे हैं कि क्या होता है! रुपया नीचे गिरा है। सिक्का सीधा
गिरा है। फकीर ने कहा कि ‘देखते हो! जीत निश्चित है।’ सिक्का खीसे में रख
लिया है और सैनिक एक नये उत्साह से, एक नये जीवन से युद्ध में कूद पड़े
हैं। दस दिन बाद वे जीतकर वापस लौट आये हैं।