Social Icons

Pages

Friday 29 June 2012

मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं

1.मुश्किलें दिल के इरादे आजमाती हैं ,
हुस्न के परदे निगाहों से हटती हैं ,
हौसला मत हर गिर कर ओ मुसाफिर ,
ठोकरें इन्सान को चलाना सिखाती हैं |


2.खुशबू बनकर  गुलों  से  उड़ा  करते  हैं  ,
धुआं  बनकर  पर्वतों  से  उड़ा  करते  हैं ,
ये  कैंचियाँ  खाक  हमें  उड़ने  से  रोकेगी ,
हम  परों  से  नहीं  हौसलों  से  उड़ा  करते  हैं|


3.मिलेगी परिंदों को मंजिल ये उनके पर बोलते हैं ,
रहते हैं कुछ लोग खामोश लेकिन उनके हुनर बोलते हैं |


4.हो के मायूस न यूं शाम से ढलते रहिये ,
ज़िन्दगी भोर है सूरज सा निकलते रहिये ,
एक ही पाँव पे ठहरोगे तो थक जाओगे ,
धीरे-धीरे ही सही राह पे चलते रहिये .


5. वो  पथ  क्या  पथिक  कुशलता  क्या ,जिस  पथ  में  बिखरें  शूल  न  हों 
     नाविक  की  धैर्य  कुशलता  क्या , जब  धाराएँ प्रतिकूल  न  हों ।
6. जब  टूटने  लगे  होसले  तो  बस  ये  याद  रखना ,बिना  मेहनत  के  हासिल  तख्तो  ताज  नहीं  होते ,
ढूंड  लेना  अंधेरों  में  मंजिल  अपनी ,जुगनू  कभी  रौशनी  के  मोहताज़  नहीं  होते .
7. यह अरण्य झुरमुट को कटे अपनी रह बना ले ,
कृत दस यह नहीं किसी का जो चाहे अपना ले
जीवन उनका नहीं युधिस्ठिर जो इससे डरते हैं,
यह उनका जो चरण रोप निर्भय होकर चलते हैं
|
8. कुछ बात है की हस्ती मिटती नहीं हमारी ,
सदियों रहा है दुश्मन दौरे -जमाँ हमारा |
9.समर में घाव खता है उसी का मान होता है,
छिपा उस वेदना में अमर बलिदान होता है,
सृजन में चोट खाता है छेनी और हथौड़ी का,
वही पाषाण मंदिर में कहीं भगवन होता है |
10.कोई भी लक्ष्य बड़ा नहीं ,
जीता वही जो डरा नहीं |
  Any Query mail us---- ankeshchakravarti@gmail.com

Tuesday 26 June 2012

Nadi k kinare bethker kisterha mnushya chunitiya svikaarta h

Nadi k kinare bethker kisterha mnushya chunitiya svikaarta h


एक व्यक्ति नित्य ही समुद्र तट पर जाता और वहां घंटों बैठा रहता। आती-जाती लहरों को निरंतर देखता रहता। बीच-बीच में वह कुछ उठाकर समुद्र में फेंकता, फिर आकर अपने स्थान पर बैठ जाता। तट पर आने वाले लोग उसे विक्षिप्त समझते और प्राय: उसका उपहास किया करते थे। कोई उसे ताने कसता तो कोई अपशब्द कहता, किंतु वह मौन रहता और अपना यह प्रतिदिन का क्रम नहीं छोड़ता। एक दिन वह समुद्र तट पर खड़ा तरंगों को देख रहा था। थोड़ी देर बाद उसने समुद्र में कुछ फेंकना शुरू किया। उसकी इस गतिविधि को एक यात्री ने देखा। पहले तो उसने भी यही समझा कि यह मानसिक रूप से बीमार है, फिर उसके मन में आया कि इससे चलकर पूछें तो। वह व्यक्ति के निकट आकर बोला- भाई! यह तुम क्या कर रहे हो? उस व्यक्ति ने उत्तर दिया- देखते नहीं, सागर बार-बार अपनी लहरों को आदेश देता है कि वे इन नन्हे शंखों, घोंघों और मछलियों को जमीन पर पटककर मार दें। मैं इन्हें फिर से पानी में डाल देता हूं। यात्री बोला- यह क्रम तो चलता ही रहता है। लहरें उठती हैं, गिरती हैं, ऐसे में कुछ जीव तो बाहर होंगे ही। तुम्हारी इस चिंता से क्या अंतर पड़ेगा? उस व्यक्ति ने एक मुट्ठी शंख-घोंघों को अपनी अंजुली में उठाया और पानी में फेंकते हुए कहा- देखा कि नहीं, इनके जीवन में तो फर्क पड़ गया? वह यात्री सिर झुकाकर चलता बना और वह व्यक्ति वैसा ही करता रहा। सार यह है कि अच्छे कार्य का एक लघु प्रयास भी महत्वपूर्ण होता है। जैसे बूंद-बूंद से घट भरता है, वैसे ही नन्हे प्रयत्नों की श्रंखला से सत्कार्य को गति मिलती है। अत: बाधाओं की परवाह किए बगैर प्रयास करना न छोड़ें।

मंदबुद्धि बालक विद्वान वरदराज बनकर उभरा

मंदबुद्धि बालक विद्वान वरदराज बनकर उभरा 

विद्यालय में वह मंदबुद्धि कहलाता था। उसके अध्यापक उससे नाराज रहते थे क्योंकि उसकी बुद्धि का स्तर औसत से भी कम था। कक्षा में उसका प्रदर्शन सदैव निराशाजनक ही होता था। अपने सहपाठियों के मध्य वह उपहास का विषय था। विद्यालय में वह जैसे ही प्रवेश करता, चारों ओर उस पर व्यंग्य बाणों की बौछार सी होने लगती। इन सब बातों से परेशान होकर उसने विद्यालय आना ही छोड़ दिया। एक दिन वह मार्ग में निर्थक ही भ्रमण कर रहा था। घूमते हुए उसे जोरों की प्यास लगी। वह इधर-उधर पानी खोजने लगा। अंत में उसे एक कुआं दिखाई दिया। वह वहां गया और प्यास बुझाई। वह काफी थक चुका था, इसलिए पानी पीने के बाद वहीं बैठ गया। उसकी दृष्टि पत्थर पर पड़े उस निशान पर गई जिस पर बार-बार कुएं से पानी खींचने के कारण रस्सी के निशान पड़ गए थे। वह मन ही मन विचार करने लगा कि जब बार-बार पानी खींचने से इतने कठोर पत्थर पर रस्सी के निशान पड़ सकते हैं तो निरंतर अभ्यास से मुझे भी विद्या आ सकती है। उसने यह विचार गांठ में बांध लिया और पुन: विद्यालय जाना आरंभ कर दिया। उसकी लगन देखकर अध्यापकों ने भी उसे सहयोग किया। उसने मन लगाकर अथक परिश्रम किया। कुछ सालों बाद यही विद्यार्थी उद्भट विद्वान वरदराज के रूप में विख्यात हुआ, जिसने संस्कृत में मुग्धबोध और लघुसिद्धांत कौमुदी जैसे ग्रंथों की रचना की। आशय यह है कि दुर्बलताएं अपराजेय नहीं होतीं। यदि धैर्य, परिश्रम और लगन से कार्य किया जाए तो उन पर विजय प्राप्त कर प्रशंसनीय लक्ष्यों की प्राप्ति की जा सकती है।

एक गिलास दूध

एक गिलास दूध

एक बार एक लड़का अपने स्कूल की फीस भरने के लिए एक दरवाजे से दूसरे दरवाजे तक कुछ सामान बेचा करता था, एक दिन उसका कोई सामान नहीं बिका और उसे बड़े जोर से भूख भी लग रही थी. उसने तय किया कि अब वह जिस भी दरवाजे पर जायेगा, उससे खाना मांग लेगा. दरवाजा खटखटाते ही एक लड़की ने दरवाजाखोला, जिसे देखकर वह घबरा गया और बजाय खाने के उस...ने पानी का एक गिलास पानी माँगा.लड़की ने भांप लिया था कि वह भूखा है, इसलिए वह एक........बड़ा गिलास दूध का ले आई. लड़के ने धीरे-धीरे दूध पी लिया." कितने पैसे दूं?" लड़के ने पूछा." पैसे किस बात के?" लड़की ने जवाव मेंकहा." माँ ने मुझे सिखाया है कि जब भी किसी पर दया करो तो उसके पैसे नहीं लेने चाहिए."" तो फिर मैं आपको दिल से धन्यबाद देताहूँ."जैसे ही उस लड़के ने वह घर छोड़ा, उसे न केवल शारीरिक तौर पर शक्ति मिल चुकीथी , बल्कि उसका भगवान् और आदमी पर भरोसा और भी बढ़ गया था.
 
सालों बाद वह लड़की गंभीर रूप से बीमार पड़ गयी. लोकल डॉक्टर ने उसे शहरके बड़े अस्पताल में इलाज के लिए भेज दिया. विशेषज्ञ डॉक्टर होवार्ड केल्ली को मरीज देखने के लिए बुलाया गया. जैसे ही उसने लड़की के कस्वे का नाम सुना, उसकी आँखों में चमक आ गयी. वहएकदम सीट से उठा और उस लड़की के कमरे में गया. उसने उस लड़की को देखा, एकदम पहचान लिया और तय कर लिया कि वह उसकी जान बचाने के लिए जमीन-आसमान एक कर देगा..उसकी मेहनत और लग्न रंग लायी और उस लड़की कि जान बच गयी. डॉक्टर ने अस्पताल के ऑफिस में जा कर उस लड़की के इलाज का बिल लिया. उस बिल के कौने में एक नोट लिखा और उसे उस लड़की के पास भिजवा दिया लड़की बिल का लिफाफा देखकर घबरा गयी, उसे मालूम था कि वह बीमारी से तो वह बचगयी है लेकिन बिल कि रकम जरूर उसकी जान लेलेगी. फिर भी उसने धीरे से बिल खोला, रकम को देखा और फिर अचानक उसकी नज़र बिल के कौने में पेन से लिखे नोट पर गयी, जहाँ लिखा था," एक गिलास दूध द्वारा इस बिल का भुगतान किया जा चुकाहै." नीचे डॉक्टर होवार्ड केल्ली के हस्ताक्षर थे.ख़ुशी और अचम्भे से उस लड़की के गालोंपर आंसूटपक पड़े उसने ऊपर कि और दोनों हाथ उठा कर कहा," हे भगवान! आपकाबहुत-बहुत धन्यवाद, आपका प्यार इंसानों के दिलों और हाथों द्वारा न जाने कहाँ- कहाँ फैल चुका है.

ज़िन्दगी का कड़वा सच

ज़िन्दगी का कड़वा सच

 

 

एक भिखारी था| वह न ठीक से खाता था, न पीता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था| उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी| उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी| उसे कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था| भिखारी को देखकर उसे बड़ा बुरा लगता| उसका मन बहुत ही दुखी होता| वह सोचता, वह क्यों भीख मांगता है? जीने से उसे मोह क्यों है? भगवान उसे उठा क्यों नहीं लेते? एक दिन उससे न रहा गया| वह भिखारी के पास गया और बोला - "बाबा, तुम्हारी ऐसी हालत हो गई है फिर भी तुम जीना चाहते हो? तुम भीख मांगते हो, पर ईश्वर से यह प्रार्थना क्यों नहीं करते कि वह तुम्हें अपने पास बुला ले?"भिखारी ने मुंह खोला - "भैया तुम जो कह रहे हो, वही बात मेरे मन में भी उठती है| मैं भगवान से बराबर प्रार्थना करता हूं, पर वह मेरी सुनता ही नहीं| शायद वह चाहता है कि मैं इस धरती पर रहूं, जिससे दुनिया के लोग मुझे देखें और समझें कि एक दिन मैं भी उनकी ही तरह था, लेकिन वह दिन भी आ सकता है, जबकि वे मेरी तरह हो सकते हैं| इसलिए किसी को घमंड नहीं करना चाहिए|" लड़का भिखारी की ओर देखता रह गया| उसने जो कहा था, उसमें कितनी बड़ी सच्चाई समाई हुई थी| यह जिंदगी का एक कड़वा सच था, जिसे मानने वाले प्रभु की सीख भी मानते हैं|

Thursday 21 June 2012







वही सबसे तेज चलता है, जो अकेला चलता है।
प्रत्येक अच्छा कार्य पहले असम्भव नजर आता है। 



          भाग्य साहसी का साथ देता है।
         सफलता अत्यधिक परिश्रम चाहती है। 
                  
                     संकल्प ही मनुष्य का बल है। 

                     
अपने शक्तियो पर भरोसा करने वाला कभी असफल नही होता।


                           By   -    Ankesh Chakravarti
                                       ankeshchakravarti@gmail.com

Tuesday 19 June 2012

BAJH KI UDAAN



एक बार की बात है कि एक बाज का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया. कुछ दिनों  बाद उन अण्डों में से चूजे 
निकले, बाज का बच्चा भी उनमे से एक था.वो उन्ही के बीच बड़ा होने लगा. वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिटटी में इधर-उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीकी तरह चूँ-चूँ करता. बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़ पाता , और पंख फड़-फडाते हुए नीचे आ जाता . फिर एक दिन उसने एक बाज को खुले आकाश में उड़ते हुए देखा, बाज बड़े शान से बेधड़क उड़ रहा था. तब उसने बाकी चूजों से पूछा, कि-
” इतनी उचाई पर उड़ने वाला वो शानदार पक्षी कौन है?”
तब चूजों ने कहा-” अरे वो बाज है, पक्षियों का राजा, वो बहुत ही ताकतवर और विशाल है , लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम तो एक चूजे हो!”
बाज के बच्चे ने इसे सच मान लिया और कभी वैसा बनने की कोशिश नहीं की. वो ज़िन्दगी भर चूजों की तरह रहा, और एक दिन बिना अपनी असली ताकत पहचाने ही मर गया.
 दोस्तों , हममें से बहुत से लोग  उस बाज की तरह ही अपना असली potential जाने बिना एक second-class ज़िन्दगी जीते रहते हैं, हमारे आस-पास की mediocrity हमें भी mediocre बना देती है.हम में ये भूल जाते हैं कि हम आपार संभावनाओं से पूर्ण एक प्राणी हैं. हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है,पर फिर भी बस एक औसत जीवन जी के हम इतने बड़े मौके को गँवा देते हैं.
आप चूजों  की तरह मत बनिए , अपने आप पर ,अपनी काबिलियत पर भरोसा कीजिए. आप चाहे जहाँ हों, जिस परिवेश में हों, अपनी क्षमताओं को पहचानिए और आकाश की ऊँचाइयों पर उड़ कर  दिखाइए  क्योंकि यही आपकी वास्तविकता है.

        By -  Ankesh Chakravarti
                  ankeshchakravarti@gmail.com

Monday 18 June 2012

आप हाथी नहीं इंसान हैं !



एक आदमी कहीं से गुजर रहा था, तभी उसने सड़क के किनारे बंधे हाथियों को देखा, और अचानक रुक गया. उसने देखा कि हाथियों के अगले पैर में एक रस्सी बंधी हुई है, उसे इस बात का बड़ा अचरज हुआ की हाथी जैसे विशालकाय जीव लोहे की जंजीरों की जगह बस एक छोटी सी रस्सी से बंधे हुए हैं!!! ये स्पष्ठ था कि हाथी जब चाहते तब अपने बंधन तोड़ कर कहीं भी जा सकते थे, पर किसी वजह से वो ऐसा नहीं कर रहे थे.
उसने पास खड़े महावत से पूछा कि भला ये हाथी किस प्रकार इतनी शांति से खड़े हैं और भागने का प्रयास नही कर रहे हैं ? तब महावत ने कहा, ” इन हाथियों को छोटे पर से ही इन रस्सियों से बाँधा जाता है, उस समय इनके पास इतनी शक्ति नहीं होती की इस बंधन को तोड़ सकें. बार-बार प्रयास करने पर भी रस्सी ना तोड़ पाने के कारण उन्हें धीरे-धीरे यकीन होता जाता है कि वो इन रस्सियों नहीं तोड़ सकते,और बड़े होने पर भी उनका ये यकीन बना रहता है, इसलिए वो कभी इसे तोड़ने का प्रयास ही नहीं करते.”
आदमी आश्चर्य में पड़ गया कि ये ताकतवर जानवर सिर्फ इसलिए अपना बंधन नहीं तोड़ सकते क्योंकि वो इस बात में यकीन करते हैं!!
इन हाथियों की तरह ही हममें से कितने लोग सिर्फ पहले मिली असफलता के कारण ये मान बैठते हैं कि अब हमसे ये काम हो ही नहीं सकता और अपनी ही बनायीं हुई मानसिक जंजीरों में जकड़े-जकड़े पूरा जीवन गुजार देते हैं.
याद रखिये असफलता जीवन का एक हिस्सा है ,और निरंतर प्रयास करने से ही सफलता मिलती है. यदि आप भी ऐसे किसी बंधन में बंधें हैं जो आपको अपने सपने सच करने से रोक रहा है तो उसे तोड़ डालिए….. आप हाथी नहीं इंसान हैं.

Friday 15 June 2012

सफलता Safalta Success





एकाग्र रहने वाला सदा सफलता का वरण करता है।


कोई भी काम एक दिन में नहीं सफल होता। काम एक पेड़ की तरह होता है। पहले उसकी आत्मा में एक बीज बोया जाता है, हिम्मत की खाद से उसे पोषित किया जाता है और मेहनत के पानी से उसे सींचा जाता है, तब जाकर सालों बाद वह फल देने के लायक होता है
सफलता के लिए इन्तजार करना आना चाहिए। पौधे से फल की इच्छा रखना मूर्खता से अधिक कुछ भी नही है।
असफलता सफलता प्राप्त करने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 
अपने मस्तिष्क को अपना रास्ता स्वयं खोजने की शक्ति दीजिये। 
मेहनत कीजिये लेकिन बिना योजना के नहीं। एक-एक कदम उठाइए। जब एक कदम उठा चुके हों तब तैयारी करें। 
सफल लोग अपने मस्तिष्क को इस तरह का बना लेते हैं कि उन्हें हर चीज सकारात्मक व खूबसूरत लगती है।
हमारी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम अपने जीवन का प्रतिक्षन, प्रतिघंटा और प्रतिदिन कैसे बिताते हैं. 



Wednesday 13 June 2012

Gulab ka phool bano!

Gulab ka phool bano!
Q k yeh phool
us k hath mein bhi khusbu chor deta hai
jo isay masal kar phaink deta hai.

Tuesday 12 June 2012

lakshya

lakshya koi bi bada nai, jeeta wahi jo dara nai

Nasib & Dimag

jab bhi bhagvan se kuch mano to dimag nahi .nasib mangna ….. kyuki maine “dimag valo’ ko’nasib’ valo ke yaha” kamm’ karte dekha hai

                                                         By  -  Ankesh Chakravarti

                                                                 ankeshchakravarti@gmail.com


Na Pucho Ki Manzil Kaha Hai,
Abhi To Bas Safar Ka Iraada Kiya Hai.
Na Haarenge Hausla Umra Bhar,
Kisi Aur Se Nahi Khud Se Vaada Kiya Hai...



HARTA JO NAHI MUSHKILO SE KABHI,
JISKA MAQSAD HAI MANJIL KO PANA,
DHOOP MEIN DEKHKAR THODI SI CHHAYA,
JISNE SIKHA NAHI BAITH JANA,
AAG JISME "LAGAN" KI JALTI HAI,
"KAAAAAMYABI" USI KO MILTI HAI...




GUM KI ANDHERI RAAT ME
KHUD KO NA YU BEKARAR KAR,
SUBHA ZARUR AIGI
TU BAS THODA INTAZAR KAR.....



By- Ankesh Chakravarti
ankeshchakravarti@gmail.com






HARTA JO NAHI MUSHKILO SE KABHI,
JISKA MAQSAD HAI MANJIL KO PANA,
DHOOP MEIN DEKHKAR THODI SI CHHAYA,
JISNE SIKHA NAHI BAITH JANA,
AAG JISME "LAGAN" KI JALTI HAI,
"KAAAAAMYABI" USI KO MILTI HAI...
                                               
                                                                      By Ankesh Chakravarti
                                                                           ankeshchakravarti@gmail.com




MUSHKILO SE BHAG JANA ASAN HOTA HAI,
HAR PEHLU ZINDAGI KA IMTIHAN HOTA HAI,
DARNE WALO KO MILTA NAHI KUCH ZINDAGI ME,
LADNE WALO K KADMO ME JAHAN HOTA HAI.......

By- Ankesh Chakravarti
ankeshchakravarti@gmail.com